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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), कानपुर के सुप्रसिद्ध प्रोफेसर समीर खांडेकर का गत शनिवार को निधन हो गया. स्वर्गीय खांडेकर 55 वर्ष के थे. उनकी अचानक मृत्यु की वजह से पूरा आईआईटी, कानपुर कैंपस सदमे में हैं.
प्रोफेसर समीर खांडेकर अपने कैंपस में बेहद लोकप्रिय थे और उनका स्वभाव काफी अच्छा था. कैंपस के छात्र और शिक्षक उनके बारे में ऐसा मानते थे, कि “जिसका कोई नहीं होता, उसका समीर होता है”. इसी बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि खांडेकर कितने हेल्पिंग नेचर के थे.
इस शुक्रवार को स्वर्गीय खांडेकर एक पूर्व छात्र सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. सम्मेलन में वे अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के तरीकों के बारे में बात कर रहे थे। उसी समय वे दिल का दौरा पड़ने की वजह से गिर गए. उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों द्वारा उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। बताया जा रहा है कि वे 2019 से उच्च कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित थे और उनका इलाज चल रहा था। उनके दिल का दौरा पड़ने के पीछे भी इसी बीमारी को वजह बताया जा रहा है.
रविवार शाम को उनका अंतिम संस्कार किया गया. इस आकस्मिक घटना से आईआईटी परिसर में शोक और सदमे की स्थिति थी। उनके द्वारा छात्रों और साथी शिक्षकों को मदद करने की प्रवृति के कारण लोग उन्हें बहुत पसंद करते थे. यदि कारण हैं कि सबको गहरा आघात लगा है.
प्रोफेसर समीर खांडेकर प्रचलित क्यों थे ?
आई आई टी कानपुर परिसर में लोग उन्हें “सबसे दयालु लोगों में से एक” के रूप में याद करते दिखाई दिए. छात्रों ने बताया कि प्रोफ़ेसर हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण से भरे रहते थे. साथ ही वे चुनौतियों का सामना करने के लिए तत्पर रहते थे।
कैम्पस में किसी भी छात्र को किसी भी प्रकार की समस्या या कठिनाई होने पर वे प्रोफ़ेसर खांडेकर के पास समाधान के लिए जाते थे, तो प्रोफ़ेसर उनकी मदद जरूर करते थे. एक छात्र ने कहा कि “अगर किसी को कोई समस्या होती, तो वे समीर सर से संपर्क करते। मेरे यहां आने से पहले, मुझे एक वरिष्ठ ने बताया था कि मैं समीर सर से मदद ले सकता हूं, और मैंने मदद मांगी। इन वर्षों में, मुझे एहसास हुआ कि वह कितने दयालु थे.”
आई आई टी कानपुर के अकादमिक मामलों के डीन प्रोफेसर शलभ ने कहा, “वह हमेशा जीवन से भरे रहते थे।”
“वह हमेशा उन छात्रों को सलाह और मदद करते थे जो समृद्ध पृष्ठभूमि से नहीं आते थे। छात्रों के प्रति उनका दृष्टिकोण वैसा ही था जैसे माता-पिता अपने बच्चों के साथ व्यवहार करते हैं। छात्रों के प्रति उनके दृष्टिकोण में, उनके पास दयालुता और सख्ती का सही मिश्रण था,” प्रोफेसर शलभ ने कहा।
प्रोफेसर समीर खांडेकर का जीवन और उपलब्धियां
प्रोफेसर खांडेकर जबलपुर के रहने वाले थे. अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज, जबलपुर (एमपी) से बीई की डिग्री लेने के बाद उन्होंने आईआईटी-कानपुर से एमटेक की डिग्री प्राप्त की थी. इसके बाद वे जर्मनी के स्टटगार्ट विश्वविद्यालय से पीएचडी होल्डर भी थे.
उन्होंने 2004 में आईआईटी-कानपुर में पढ़ाना शुरू किया। वह “थर्मल-फ्लूइड इंजीनियरिंग विज्ञान” में विशेषज्ञता के साथ आईआईटी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर थे।
उन्होंने कई शोध किये जिनमें थर्मल प्रबंधन, निष्क्रिय गर्मी हस्तांतरण, गर्मी पाइप और ऊर्जा प्रणाली शामिल थे। 2005 में भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा खांडेकर जी ने ‘युवा वैज्ञानिक पुरस्कार’ जीता। इसके अलावा उन्हें आईआईटी कानपुर (अक्टूबर 2009 – सितंबर 2012) से पी के केलकर रिसर्च फेलोशिप से भी सम्मानित किया गया।
छात्र कल्याण के डीन का पद संभालने वाले खांडेकर जी ने “शिक्षा सोपान” भी चलाया था. यह एक पंजीकृत गैर-सरकारी संगठन था जो आईआईटी-कानपुर के सदस्यों द्वारा संचालित किया जाता था. इस संगठन के अंतर्गत खांडेकर जी समाज के अविकसित वर्गों को शिक्षा के माध्यम आगे बढ़ाना चाहते थे.
उनके परिवार में उनकी पत्नी प्रद्याना खांडेकर हैं. वहीं उनका बेटे का नाम प्रवाह है, जो कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ रहा है.